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गबन : 59
 

जालपा ने विवशता के भाव से कहा-मुझे साफ कह देना चाहिए था कि फुरसत नहीं है।

रमानाथ-फिर इनकी दावत भी तो करनी पड़ेगी।

जालपा-यह तो बुरी विपत्ति गले पड़ी।

रमानाथ-विपत्ति कुछ नहीं है, सिर्फ यहीं खयाल है कि मेरा मकान इस काम के लायक नहीं। मेज, कुर्सियां, चाय के सेट रमेश के यहां से मांग लाऊंगा, लेकिन घर के लिए क्या करूं!

जालपा-क्या यह जरूरी है कि हम लोग भी दावत करें?

रमा ने ऐसी भद्दी बात का कुछ उत्तर न दिया। उसे जालपा के लिए एक जूते की जोड़ी और सुंदर कलाई की घड़ी की फिक्र पैदा हो गई। उसके पास कौंडी भी न थी। उसका खर्च रोज बढ़ता जाता था। अभी तक गहने वालों को एक पैसा भी देने की नौबत न आई थी। एक बार गंगू महाराज ने इशारे से तकाजा भी किया था, लेकिन यह भी तो नहीं हो सकता कि जालपा फटे चप्पलों चाय-पार्टी में जाय। नहीं, जालपा पर वह इतना अन्याय नहीं कर सकता। इस अवसर पर जालपा की रूप-शोभा का सिक्का बैठ जायगा। सभी तो आज चमाचम साड़ियां पहने हुए थीं। जड़ाऊ कंगन और मोतियों के हारों की भी तो कमी न थी पर जालपा अपने सादे आवरण में उनसे कोसों आगे थी। उसके सामने एक भी नहीं जंचती थी। यह मेरे पूर्व कर्मों का फल है कि मुझे ऐसी सुंदरी मिली। आखिर यही तो खाने-पहनने और जीवन का आनद उठाने के दिन हैं। जब जवानी ही में सुख न उठाया, तो बुढ़ापे में क्या कर लेंगे ! बुढ़ापे में मान लिया धन हुआ ही तो क्या। यौवन बीत जाने पर विवाह किस काम का? साड़ी और घड़ी लाने की उसे धुन सवार हो गई। रातभर तो उसने सब्र किया। दसरे दिन दोनों चीजें लाकर ही दम लिया।

जालपा ने झुंझलाकर कहा-मैंने तो तुमसे कहा था कि इन चीजों का काम नहीं है। डेढ़ सौ से कम की न होगी?

रमानाथ-डेढ़ सौ ! इतना फजूलखर्च मैं नहीं हूं।

जालपा-डेढ़ सौ से कम की ये चीजें नहीं हैं।

जालपा ने घड़ी कलाई में बांध ली और साड़ी को खोलकर मंत्रमुग्ध नेत्रों से देखा।

रमानाथ–तुम्हारी कलाई पर यह घड़ी कैसी खिल रही है। मेरे रुपये वसूल हो गए।

जालपा- सच बताओ, कितने रुपये खर्च हुए?

रमानाथ-सच बता दें? एक सौ पैंतीस रुपये। पचहत्तर रुपये की साड़ी, दस के जूते और पचास की घड़ी।

जालपा-यह डेढ़ सौ ही हुए। मैंने कुछ बढ़ाकर थोड़े कहा था, मगर यह सब रुपये अदा कैसे होंगे? उस चुड़ैल ने व्यर्थ ही मुझे निमंत्रण दे दिया। अब मैं बाहर जाना हो छोड़ दूंगी।

रमा भी इसी चिंता में मग्न था, पर उसने अपने भाव को प्रकट करके जालपा के हर्ष में बाधा न डाली। बोला-सब अदा हो जायेगा।

जालपा ने तिरस्कार के भाव से कहा-कहां से अदा हो जाएगा, जरा सुनें। कौड़ी तो बचती नहीं, अदा कहां से हो जायगा? वह तो कहो बाबूजी घर का खर्च संभाले हुए हैं, नहीं तो मालूम होता। क्या तुम समझते हो कि मैं गहने और सायों पर मरती हूं? इन चीजों को लौटा आओ।

रमा ने प्रेमपूर्ण नेत्रों से कहा इन चीजों को रख लो। फिर तुमसे बिना पूछे कुछ न लाऊंगा।