पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/६१

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बैठा, मगर वकील साहब अभी आरामकुर्सी पर लेटे ही हुए थे।

रमा ने मुस्कराकर वकील साहब से कहा-आप भी तो आएं।

वकील साहब ने लेटे-लेटे मुस्कराकर कहा-आप शुरू कीजिए, मैं भी आया जाता हूँ।

लोगों ने चाय पी फल खाए: पर वकील साहब के सामने हंसते-बोलते रमा और जालपा दोनों ही झिझकते थे। जिंदादिल बूढ़ों के साथ तो सोहबत का आनंद उठाया जा सकता है, लेकिन ऐसे रूखे, निर्जीव मनुष्य जवान भी हों, तो दूसरों को मुर्दा बना देते हैं। वकील साहब ने बहुत आग्रह करने पर दो घूंट चाय पी। दूर से बैठे तमाशा देखते रहे। इसलिए जब रतन ने जालपा से कहा-चलो, हम लोग जरा बगीचे की सैर करें, इन दोनों महाशयों को समाज और नीति की विवेचना करने दें, तो मानो जालपा के गले का फंदा छूट गया। रमा ने पिंजड़े में बंद पक्षी की भांति उन दोनों को कमरे से निकलते देखा और एक लंबी सास ली। वह जानता कि यहां यह विपत्ति उसके सिर पड़ जायगी, तो आने का नाम न लेता।

वकील साहब ने मुंह सिकोड़कर पहलू बदला और बोले-मालूम नहीं, पेट में क्या हो गया है, कि कोई चीज हजम ही नहीं होती। दूध भी नहीं हजम होता। चाय को लोग न जाने क्यों इनने शौक से पोते हैं, मुझे तो इसकी सूरत से भी डर लगता है। पीते ही बदन में ऐंठन-सी होने लगती है और आंखों से चिनगारियां-सी निकलने लगती हैं।

रमा ने दर भाग्ने हाजमे की कोई दवा नहीं की?

वकील साहब ने अरुचि के भाव से कहा-देवाओं पर मुझे रत्ती भर भी विश्वास नहीं। इन वैद्यों और डाक्टरों में ज्यादा बेसमझ आदमी संसार में न मिलेंगे। किसी में निदान की शक्ति नहीं। दो वैद्यों, दो डाक्टरों के निदान कभी न मिलेंगे। लक्षण वही हैं, पर एक वैद्य रक्तदोष बतलाता हैं, दूम्परा पित्तदोष, एक डाक्टर फेफड़े का सून बतलाता हैं, दूसरा आमाशय का विकार। बस, अनमान में दवा की जाती है और निर्दयता से रोगियों को गर्दन पर छुरी फेरी जाती हैं। इन डाक्टरों ने मुझे तो अब तक जहन्नुम पहुंचा दिया होता, पर मैं उनके पंजे से निकल भागा। योगाभ्यास की बड़ी प्रशंसा सुनता हूं पर कोई ऐसे महाना नहीं मिलते, जिनसे कुछ सीख सकूं। किताबों के आधार पर कोई क्रिया करने से लाभ के बदले न होने का डर रहता। यहां तो आरोग्य-शास्त्र का खंडन हो रहा था, उधर दोनों महिलाओं में प्रगाढ़ स्नेह की बातें हो रही थी।

रतन ने मुस्कराकर कहा- मेरे पतिदेव को देखकर तुम्हें बड़ा आश्चर्य हुआ होगा।

जालपा को आश्चर्य ही नहीं, भम्र भी हुआ था। बोली-वकील साहब का दूसरा विवाह होगा।

रतन-हां, अभी पांच ही बरस तो हुए हैं। इनकी पहली स्त्री को मरे पैंतीस वर्ष हो गए।

उस समय इनकी अवस्था कुल पच्चीस साल की थी। लोगों ने समझाना, दूसरा विवाह कर लो; पर इनके एक लड़का हो चुका था, विवाह करने से इंकार कर दिया और तीस साल तक अकेले रहे, मगर आज पांच वर्ष हुए, जवान बेटे का देहांत हो गया, तब विवाह करना आवश्यक हो गया। मेरे मां-बाप न थे। मामाजी ने मेरा पालन किया था। कह नहीं सकती, इनसे कुछ ले लिया या इनकी सज्जनता पर मुग्ध हो गए। मैं तो समझती हूं, ईश्वर की यही इच्छा थी, लेकिन मैं जब से आई हूं, मोटी होती चली जाती हूं। डॉक्टरों का कहना है कि तुम्हें संतान नहीं हो सकती।