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82 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


रमानाथ-तुम्हारे कारण रतन के बंगले पर जाना पड़ा। तुमने सब रुपये उठाकर दे दिए, उसमें दो सौ रुपये मेरे भी थे।

जालपा–तो मुझे क्या मालूम था, तुमने कहा भी तो न था; मगर उनके पास से रुपये कहीं जा नहीं सकते, वह आप ही भेज देंगी।

रमानाथ-माना; पर सरकारी रकम तो कल दाखिल करनी पड़ेगी।

जालपा-कल मुझसे दो सौ रुपये ले लेना, मेरे पास हैं।

रमा को विश्वास न आया। बोला-कहीं न हों तुम्हारे पास । इतने रुपये कहां से आए?

जालपा–तुम्हें इससे क्या मतलब, मैं तो दो सौ रुपये देने को कहती हूं।

रमा का चेहरा खिल उठा। कुछ-कुछ आशा बंधी। दो-सौ रुपये यह दे-दे, दो सौ रुपये रतन से ले लें. सौ रूपये मेरे पास हैं ही, तो कुल तीन सौ की कमी रह जाएगी, मगर यही तीन सौ रुपये कहां से आएंगे? ऐसा कोई नजर न आता था, जिससे इतने रुपये मिलने की आशा को जा सके। हां, अगर रतन सब रुपये दे दे तो बिगड़ी बात बन जाय। आशा को यही एक आधार रह गया था। जब वह खाना खाकर लेटा, तो जालपा ने कहा-आज किस सोच में पड़े हो?

रमानाथ–सोच किस बात का? क्या मैं उदास हूं?

जालपा–हां, किसी चिंता में पड़े हुए हो, मगर मुझसे बताते नहीं हो ।

रमानाथ- ऐसी कोई बात होती तो तुमसे छिपाता?

जालपा-वाह, तुम अपने दिल की बात मुझसे क्यों कहोगे? ऋषियों की आज्ञा नहीं है।

रमानाथ-मैं उन ऋषियों के भक्तों में नहीं हूं।

जालपा-वह तो तब मालूम होता, जब मैं तुम्हारे हुदय में पैठकर देखती।

रमानाथ-वहां तुम अपनी ही प्रतिमा देखतीं।

रात को जालपा ने एक भयंकर स्वप्न देखा, वह चिल्ला पड़ी। रमा ने चौंककर पूछा-क्या है जालपा, क्या स्वप्न देख रही हो?

जालपा ने इधर-उधर घबड़ाई हुई आंखों से देखकर कहा-बड़े संकट में जान पड़ी थी। न जाने कैसा सपना देख रही थी ।

रमानाथ- क्या देखा?

जालपा-क्या बताऊं, कुछ कहा नहीं जाता। देखती थी कि तुम्हें कई सिपाही पकड़े लिए जा रहे हैं। कितना भंयकर रूप था उनका।

रमा का खून सूख गया। दो-चार दिन पहले, इस स्वप्न को उसने हंसी में उड़ा दिया होता; इस समय वह अपने को सशंकित होने से न रोक सको, पर बाहर से हंसकर बोला-तुमने सिपाहियों से पूछा नहीं, इन्हें क्यों पकड़े लिए जाते हो?

जालपा–तुम्हें हंसी सूझ रही है, और मेरा हृदय कांप रहा है।

थोड़ी देर के बाद रमा ने नींद में बकना शुरू किया-अम्मां, कहे देता हूं, फिर मेरा मुंह न देखोगी, मैं डूब मरूं।

जालपा को अभी तक नींद न आई थी, भयभीत होकर उसने रमा को जोर से हिलाया और बोली-मुझे तो हंसते थे और खुद बकने लगे। सुनकर रोएं खड़े हो गए। स्वप्न देखते थे क्या?