पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/८५

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गबन : 85
 


प्यादा-मालूम क्यों नहीं। पुरजी तो मेरे पास है। तब से कुछ दिया ही नहीं, कम कहां से हो गए।

रमा ने प्यादे को पुकारकर कहा-चलो तुम दुकान पर, मैं खुद आता हूं।

प्यादा-हम बिना कुछ लिए न जाएंगे, साहब ! आप यों ही टाल दिया करते हैं, और बातें हमको सुननी पड़ती हैं।

रमा सारी दुनिया के सामने जलील बन सकता था, किंतु पिता के सामने जलील बनना उसके लिए मौत से कम न था। जिस आदमी ने अपने जीवन में कभी हराम का एक पैसा न छुआ हो, जिसे किसी से उधार लेकर भोजन करने के बदले भूखों सो रहना मंजूर हो, उसका लड़का इतना बेशर्म और बेगैरत हो । रमा पिता की आत्मा का यह घोर अपमान न कर सकता था। वह उन पर यह बात प्रकट न होने देना चाहता था कि उनका पुत्र उनके नाम को बट्टा लगा रहा है। कर्कश स्वर में प्यादे से बोला-तुम अभी यहीं खड़े हो? हट जाओ, नहीं तो धक्के देकर निकाल दिए जाओगे।

प्यादा-हमारे रुपये दिलवाइए, हम चले जायं। हमें क्या आपके द्वार पर मिठाई मिलती है ।

रमानाथ- तुम न जाओगे | जाओ लाला से कह देना नालिश कर दें।

दयानाथ ने डांटकर कहा-क्या बेशर्मी की बातें करते हो जी। जब गिरह में रुपये न थे. तो चीज लाए ही क्यों? और लाए, तो जैसे बने वैसे रुपये अदा करो। कह दिया, नालिश कर दो। नालिश कर देगा, तो कितनी आबरू रह जायगी? इसका भी कुछ खयाल है । सारे शहर में उंगलियां उठेंगी; मगर तुम्हें इसकी क्या परवा। तुमको यह सूझी क्या कि एकबारगी इतनी बड़ी गठरी सिर पर लाद ली। कोई शादी-ब्याह का अवसर होता, तो एक बात भी थी। और वह औरत कैसी है जो पति को ऐसी बेहूदगी करते देखती है और मना नहीं करती। आख़िर तुमने क्या सोचकर यह कर्ज लिया? तुम्हारी ऐसी कुछ बडी आमदनी तो नहीं है।

रमा को पिता की यह डांट बहुत बुरी लग रही थी। उसके विचार में पिता को इस विषय में कुछ बोलने का अधिकार ही न था। नि:संकोच होकर बोला-आप नाही इतना बिगड़ रहे हैं, आपसे रुपये मांगने जाऊं तो कहिएगा। मैं अपने वेतन से थोड़ा-थोड़ा करके सब चुका देंगी। अपने मन में उसने कहा-यह तो आप ही की करनी का फल, है। आप ही के पाप का प्रायश्चित कर रहा हूं।

प्यादे ने पिता और पुत्र में वाद-विवाद होते देखा, तो चुपके से अपनी राह ली। मुंशीजी भुनभुनाते हुए स्नान करने चले गए। रमा ऊपर गया, तो उसके मुंह पर लज्जा और ग्लानि की फटकार बरस रही थी। जिस अपमान से बचने के लिए वह डाल-डाल, पात-पात भागता- फिरता था, वह हो ही गया। इस अपमान के सामने सरकारी रुपयों की फिक्र भी गायब हो गई। कर्ज लेने वाले बला के हिम्मती होते हैं। साधारण बुद्धि का मनुष्य ऐसी परिस्थितियों में पड़कर घबरा उठता है; पर बैठकबाजों के माथे पर बल तक हीं पड़ता। रमा अभी इस कला में दक्ष नहीं हुआ था। इस समय यदि यमदूत उसके प्राण हरने आता, तो वह आंखों से दौड़कर उसका स्वागत करता। कैसे क्या होगा, यह शब्द उसके एक-एक रोम से निकल रहा था। कैसे क्या होगा। इससे अधिक वह इस समस्या की और व्याख्या न कर सकता था। यही प्रश्न एक सर्वव्यापी पिच की भांति उसे घूरता दिखाई देता था। कैसे क्या होगा | यही शब्द अगणित