पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/८९

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गबन : 89
 


सौ मेरी लागत बैठ गई है।

रमा ने मुस्कराकर कहा-ऐसा न कहिए सेठजी, जुर्माना देना पड़ जाएगा।

जौहरी-बाबू साहब, हार तो सौ रुपये में भी आ जाएगा और बिल्कुल ऐसा ही। बल्कि चमक-दमक में इससे भी बढ़कर। मगर परखना चाहिए। मैंने खुद ही आपसे मोल-तोल की बात नहीं की। मोल-तोल अनाड़ियों से किया जाता है। आपसे क्या मोल-तोला हम लोग निरे रोजगारी नहीं हैं बाबू साहब, आदमी का मिजाज देखते है। श्रीमतीजी ने क्या अमीराना मिजाज दिखाया है कि वाह ।

रतन ने हार को लुब्ध नेत्रों से देखकर कहा कुछ तो कम कीजिए, सेठजी ! आपने तो जैसे कसम खा ली !

जौहरी-कमी का नाम न लीजिए, हुजूर । यह चीज आपकी भेंट है।

रतन-अच्छा, अब एक बात बतला दीजिए, कम-से-कम इसका क्या लेंगे?

जौहरी ने कुछ क्षुब्ध होकर कहा-बारह सौ रुपये और बारह कौड़ियां होंगी, हुजूर। आप से कसम खाकर कहता हूं, इसी शहर में पंद्रह सौ का बेचूगां, और आपसे कह जाऊंगा, किसने लिया।

यह कहते हुए जौहरी ने हार को रखने का केस निकाला। रतन को विश्वास हो गया, यह कुछ कम न करेगा। बालकों की भांति अधीर होकर बोली-आप तो ऐसा समेटें लेते हैं कि हार को नजर लग जाएगी ।


जौहरी-क्या करूं, हुजूर जब ऐसे दरबार में चीज को कदर नहीं होती, तो दुख होता है।

रतन ने कमरे में जाकर रमा को बुलाया और बोली-आप समझते हैं यह कुछ और उतरेगा?

रमानाथ-मेरी समझ में तो चीज एक हजार से ज्यादा की नहीं है।

रतन-उंह, होगा। मेरे पास तो छ: सौ रुपये है। आप चार सौ रुपये का प्रबंध कर दें, तो ले लें। यह इसी गाड़ी से काशी जा रहा है। उधार न मानेगा। वकील साहब किसी जलसे में गए हैं, नौ-दस बजे के पहले न लौटेंगे। मैं आपको कल रुपये लौटा देंगी।

रमा ने बड़े संकोच के साथ कहा-विश्वास मानिए, मैं बिल्कुल खाली हाथ है। मैं तो आपसे रुपये मांगने आया था। मुझे बड़ी सख्त जरूरत है। वह रुपये मुझे दे दीजिए, मैं आपके लिए कोई अच्छा-सा हार यहीं से ला दूंगा। मुझे विश्वास है, ऐसा हार सात-आठ सौ में मिल जाएगा।

रतन–चलिए, मैं आपकी बातों में नहीं आती। छ: महीने में एक कान तो बनवा न सके, अब हार क्या लाएंगे ! मैं यहां कई दुकानें देख चुकी हूं, ऐसी चीज शायद ही कहीं निकले। और निकले भी, तो इसके ड्योढे दाम देने पड़ेंगे।

रमानाथ–तो इसे कल क्यों न बुलाइए, इसे सौदा बेचने की गरज होगी, तो आप ठहरेगा।

रतन–अच्छा कहिए, देखिए क्या कहता है।

दोनों कमरे के बाहर निकले, रमा ने जौहरी से कहा--तुम कल आठ बजे क्यों नहीं आते?

जौहरी-नहीं हुजूर, कल काशी में दो-चार बड़े रईसों से मिलना है। आज के न-जाने से बड़ी हानि हो जाएगी।