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96 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


थी, मुझे मैके जाना पड़े, तो मैं जाऊ या न जाऊ? मेरा जी तो वहां बिल्कुल न लगे।

रमानाथ–तुम तो कहीं जाने को तैयार बैठी हो।

जालपा-सेठानीजी ने बुला भेजा है, दोपहर तक चली आऊंगी।

रमा की दशा इस समय उस शिकारी की-सी थी, जो हिरन को अपने शावकों के साथ किलोल करते देखकर तनी हुई बंदूक कंधे पर रख लेता है, और यह वात्सल्य और प्रेम की क्रीड़ा देखने में तल्लीन हो जाता है। उसे अपनी ओर टकटकी लगाए देखकर जालपा ने मुस्कराकर कहा-देखो, मुझे नजर न लगा देना। मैं तुम्हारी आंखों से बहुत डरती हूं।

रमा एक ही उड़ान में वास्तविक संसार से कल्पना और कवित्व के संसार में जा पहुंचा। ऐसे अवसर पर जब जालपा की रोम-रोम आनंद से नाच रहा है, क्या वह अपना पत्र देकर उसकी सुखद कल्पनाओं को दलित कर देगा? वह कौन हृदयहीन व्याध है, जो चहकती हुई चिड़िया की गर्दन पर छुरी चला देगा? वह कौन अरसिक आदमी है, जो किसी प्रभात-कुसुम को तोड़कर पैरों से कुचल डालेगा? रमा इतना हदयहीन, इतना अरसिक नहीं है। वह जालपा पर इतना बड़ा आघात नहीं कर सकता। उसके सिर कैसी ही विपत्ति क्यों न पड़ जाए, उसकी कितनी ही बदनामी क्यों न हो, उसका जीवन ही क्यों न कुचल दिया जाए, पर वह इतना निष्ठुर नहीं हो सकता। उसने अनुरक्त होकर कहा-नजर तो न लगाऊंगा, हां, हदय से लगा लूंगा। इसी एक वाक्य में उसकी सारी चिंताएं, सारी बाधाएं विसर्जित हो गईं। सेह-संकोच की वेदी पर उसने अपने को भेंट कर दिया। इस अपमान के सामने जीवन के और सारे क्लेश तुच्छ थे। इस समय उसकी दशा उस बालक की-सी थी, जो फोड़े पर नश्तर की क्षणिक पीड़ा ने सहकर उसके फूटने, नासूर पड़ने, वर्षों खाट पर पड़े रहने और कदाचित् प्राणांत हो जाने के भय को भी भूल जाता है।

जालपा नीचे जाने लगी, तो रमाने कातर होकर उसे गले से लगा लिया और इस तरह भौंच-भींचकर उसे आलिंगन करने लगा, मानो यह सौभाग्य उसे फिर न मिलेगी। कौन जानता है, यही उसका अंतिम आलिंगन हो। उसके कर-पाश मानो रेशम के सहस्रों तारों से संगठित होकर जालपा से चिमट गए थे। मानो कोई मरणासन्न कृपण अपने कोष की कुंजी मुट्ठी में बंद किए हो, और प्रतिक्षण मुट्ठी कठोर पड़ती जाती हो। क्या मुट्ठी को बलपूर्वक खोल देने से ही उसके प्राण न निकल जाएंगे?

सहसा जालपा बोली-मुझे कुछ रुपये तो दे दो, शायद वहां कुछ जरूरत पड़े।

रमा ने चौंककर कहा-रुपये ' रुपये तो इस वक्त नहीं हैं।

जालपा–हैं हैं, मुझसे बहाना कर रहे हो। बस मुझे दो रुपये दे दो, और ज्यादा नहीं चाहती।

यह कहकर उसने रमा को जेब में हाथ डाल दिया, और कुछ पैसे के साथ वह पत्र भी निकाल लिया।

रमा ने हाथ बढ़ाकर पत्र को जालपा से छीनने की चेष्टा करते हुए कहा-कागज मुझे दे दो, सरकारी कागज है।

जालपा—किसका खत है बता दो?

जालपा ने तहे किए हुए पुरजे को खोलकर कहा-यह सरकारी कागज है ! झूठे