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पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/१००

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यह करैं, न्यासै कटक बाँध कै लरैं। इतना कह आधी आधी गाये औ ग्वाल बाल बाँट लिये। तब बन के फल फूल तोड़ झोलियो में भर भर लगे तुरही, भेर, भोपू, डफ, ढोल, दमामे, मुखही से बजाय बजाय लड़ने और मार मार पुकारने। ऐसे कितनी एक बेर तक लड़े, फिर अपनी अपनी टोली निराली ल गाये चराने लगे।

इस बीच बलदेवजी से सखा ने कहा―महाराज, यहाँ से थोड़ी सी दूर पर एक तालबन है, तिसमें अमृत समान फल लगे है, तहाँ गधे के रूप एक राक्षस रखवाली करता है। इतनी बात सुनते ही बलरामजी ग्वाल बालो समेत विस बन में गये और लगे ईट, पत्थर, ढेले, लाठियाँ भार मार फल झाड़ने। शब्द सुन कर धेनुक नाम खर रेकता आया है विसने आते ही फिरकर बलदेवजी की छाती में एक दुलती मारी, तब इन्होने विसे उठाय कर दे पटका, फिर वह लोट पोटके उठा और धरती खूँद खुँद कान दबाय हट हट दुलत्तियाँ झाड़ने लगा। ऐसे बड़ी बेर लग लड़ता रहा। निदान बलरामजी ने विसकी दोनो पिछली टाँग पकड़ फिरायकर एक ऊँचे पेड़ पर फेको सो गिरते ही मर गया, और साथ उसके वह रूख भी टूट पड़ा। दोनों के गिरने से अति शब्द हुआ और सारे बन के वृक्ष हिल उठे।

देखि दूरि सो कहत मुरारी। हाले, रूख शब्द भय भारी॥
तबहि सखा हलधर के आये। चलहु कृष्ण तुम बेग बुलाये॥

एक असुर मारा है सो पड़ा है। इतनी बात के सुनते ही श्रीकृष्ण भी बलरामजी के पास जा पहुँचे, तब धेनुक के साथी जितने राक्षस थे सो सब चढ़ आए। तिन्हें श्रीकृष्णचंदजी ने