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हूँ। श्रीकृष्ण बोले―अब तू निरभय चला जा, हमारे पद के चिह्न तेरे सिर पर देख तुझसे कोई न बोलेगा। ऐसे कह श्रीकृष्णचंद्र ने तिस समै गरुड़ को बुलाय काली के मन का भय, मिटाय दिया। तब काली ने धूप दीप, नैवेद्य, समेत विधि से पूजा कर बहुत सी भेंट श्रीकृष्ण के आगे धर, हाथ जोड़ बिनती केर बिदा होय कहा―

चार घरी नाचे मो माथा। यह मन प्रीति राखियो नाथा।

यो कह दंडवत कर काली तो कुटुंब समेत रौनक दीप को गया और श्रीकृष्णचंद जल से बाहर आये।


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