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ग्वाल खोल दृग कहत निहारि । कहाँ गई वह अग्नि मुरारि ।
कब फिर आये बन भंडीर । होत अचंभौ यह बलबीर ॥

ऐसे कह गाये ले सत्र मिल कृष्ण बलराम के साथ श्रृंदावन आए, और सबने अपने अपने घर जाय कहा कि आज बन में बलराम जी ने प्रलंब नाम राक्षस को मारा और मुंज बन में आग लगी थी सो भी हरि के प्रताप से बुझ गई।

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी ने कहा--हे राजा, ग्वाल बालो के मुख से यह बात सुन सब ब्रजबासी देखने को तो गये पर विन्होने कृष्णचरित्र का कुछ भेद न पाया ।