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धार जल बरसाता था और इधर पर्वत पै गिर छनाक तबे की बूँँद हो जाता था । यह समाचार सुन इंद्र भी कोप कर आप चढ़ आया और लगातार उसी भाँति सात दिन बरसा, पर ब्रज में हरि ‌प्रताप से एक बूँद भी न पड़ी। और सब जल निबड़ा तब मेघो ने आ हाथ जोड़ कहा कि हे नाथ, जितना महाप्रलय का जल था सबका सब हो चुका, अब क्या करे। यो सुन इंद्र ने अपने ज्ञान ध्यान से विचारा कि आदि पुरुष ने औतार लिया, नहीं तो ‌किसमें इतनी सामर्थ थी जो गिरि धारन कर ब्रज की रक्षा करता। ऐसे सोच समझ अछता पछता मेंघों समेत इंद्र अपने स्थान को गया और बादल उघड़ प्रकाश हुआ । तब सब ब्रजवासियों ने प्रसन्न हो श्रीकृष्ण से कहा―महाराज, अब गिरि उतार धरिये, मेघ जाता रहा । यह बचन सुनते ही श्रीकृष्णचंद ने पर्वत जहाँ का जहाँ रख दिया ।



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