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सत्ताइसवाँ अध्याय

श्रीशुकदेव बोले कि जद हरि ने गिरि केर से उतार धरा तिस समै सब बड़े बड़े गोप तो इस अद्भुत चरित्र को देख यों कह रहे थे, कि जिसकी शक्ति ने इस महाप्रलय से आज ब्रजमण्डल बचाया तिसे हम नंदसुत कैसे कहेंगे, हाँ किसी समय नंद जसोदा ने महातप किया था, इसीसे भगवान ने आ इनके घर जन्म लिया है। औ ग्वाल बाल आय आय श्रीकृष्ण के गले मिल मिस पूछने लगे कि भैया, तूने इस कोमल कमल से हाथ पर कैसे ऐसे भारी पर्वत का बोझ सँभाला, औ नन्द जसोदा करुना कर पुत्र को हृदय लगाय हाथ दाब उँगली चटकाय कहने लगे, कि सात दिन गिरि कर पर रक्खा, हथि दुखता होयगा, और गोपी जसोदा के पास आय पिछली सब कृष्ण की लीला गाय कहने लगीं―

यह जो बालक पूत तिहारो। चिर जीवौ ब्रज को रखवारी॥
दानव दैवत असुर सँहारे। कहाँ कहाँ ब्रज जन न उबारे॥
जैसी कही गर्ग ऋषिराई। सोइ सोइ बात होति है आई॥


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