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इतनी बात श्रीकृष्ण के मुख से सुनते ही इन्द्र ने उठकर वेद की विधि से पूजा की और गोविंद नाम धर चर्चामृत ले परिक्रमा करी । तिस समय गंधर्व भाँति भाँति के बाजे बजा बजा श्रीकृष्ण का जस गाने लगे औ देवता अपने विमानों में बैठे आकाश से फूल बरसावने । उस काल ऐसा समां हुआ कि मानो फेरकर श्रीकृष्ण ने जन्म लिया । जब पूजा से निचंत हो इंद्र हाथ जोड़ सनमुख खड़ा हुआ तब श्रीकृष्ण ने आज्ञा दी कि अब तुम कामधेनु समेत अपने पुर को जाओ । आज्ञा पाते ही कामधेनु औ इंद्र बिदा होय दंडवत कर इंद्रलोक को गये । और श्रीकृष्णचंद-गौ चराय साँझ हुए सब ग्वाल बालो को लिये बृंदावन आए । उन्होने अपने अपने घर जाय जाय कहा―आज हमने हरिप्रताप से इंद्र का दरसन बन में किया ।

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा―राजा यह जो श्रीगोबिंद कथा मैने तुम्हें सुनाई इसके सुनने औ सुनाने से संसार में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, चारो पदारथ मिलते हैं ।


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