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हा हा नाथ परम हितकारी। कहाँ गये स्वच्छंद बिहारी॥
चरन सरन दासी मैं तेरी। कृपासिंधु लीजे सुध मेरी॥


कि इतने में सब गोपी भी ढूँढ़ती ढूँढती उसके पास जा पहुँचीं, औ विसके गले लग लग सबों ने मिल मिल ऐसा सुख माना कि जैसे कोई महा धन खोय मध्य आधा घन पाय सुख माने। निदान सब गोपी भी विसे अति दुखित जान साथ ले महा अन मैं पैठीं, औ जहाँ लग चाँदना देखा तहाँ लग गोपियों ने बन में श्रीकृष्णचंद्र को ढूँढ़ा, जब साधन बन के अँधेरे में बाट न पाई तब वे सब वहाँ से फिर धीरज धर मिलने की आस कर, जमुना के उसी तीर पर आय बैठीं, जहाँ श्रीकृष्णचंद ने अधिक सुख दिया था।


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