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अब हम परचौ लियौ तिहारौ। कीनौ सुमिरन ध्यान हमारौ॥
मोही सो तुम प्रीत बड़ाई। निर्धन मनो संपदा पाई॥
ऐसे आई मेरे काज। छाँड़ी लोक बेद की लाज॥
जो बैरागी छाँड़े गेह। मन दे हरि स करै सनेह॥
कहा तिहारी करें बड़ाई। हमयै पलट दियौ न जाई॥

जो ब्रह्मा के सौ बरस जिये तौ भी हम तुम्हारे ऋन से उतरन न होय।