पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पैंतीसवाँ अध्याय

श्रीशुकदेव मुनि कहने लगे कि राजा, जैसे श्रीकृष्णजी ने विद्याधर को तारा औ शंखचूड़ को मारा सो प्रसंग कहता हूँ, तुम जी लगाय सुनौ। एक दिन नन्दजी ने सब गोप ग्वालों को बुलायके कहा कि भाइयो जब कृष्ण का जन्म हुआ था, तब मैंने कुलदेवी अम्बिका की यह मानता करी थी कि जिस दिन कृष्ण बारह बरस का होगा तिस दिन नगर समेत बाजे गाजे से जाकर पूजा करूँगा, सो दिन उनकी कृपा से आज देखा, अब चलकर पूजा किया चाहिए।

इतना बचन नन्दजी के मुख से सुनतेही सब गोप ग्वाल उठ धाए औ झटपटही अपने अपने घरों से पूजा की सामग्री ले आए। तद तो नन्दराय भी पुजापा औ दूध दही माखन सगड़ो बहँ गियों में रखवाय, कुटुम्ब समेत उनके साथ हो लिये औ चले चले अंबिका के स्थान पर पहुँचे। वहाँ जाय सरस्वती नदी में न्हाय, नंदजी ने पुरोहित बुलाय, सब को साथ ले देवी के मंदिर में जाय शास्त्र की रीति से पूजा की। औ जो पदारथ चढ़ाने को ले गये थे सो आगे घर, परिक्रमा दे, हाथ जोड़, बिनती कर कहा कि मा आपकी कृपा से कान्ह बारह बरस का हुआ।

ऐसे कह दंडवत कर मंदिर के बाहर आय, सहस्र ब्राह्मन जिमाए। इसमे अबेंर जो हुई तो ब्रजवासियों समेत, नंदु तीरथ व्रत कर वहाँही रहे। रात को सोते थे कि एक अजगर ने आय नंदराय का पाँव पकड़ा औ लगा निगलने, तब तो वे देखते