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अति आवभगति कर, घर भीतर ले जाय, एक सिहासन पर अपने पास बैठाय, हाथ पकड़ अति प्यार से कहा कि तुम यदुकुल में सबसे बड़े, ज्ञानी, धरमात्मा, धीर हो, इस लिये तुम्हें सब जानते है। ऐसा कोई नहीं जो तुम्हें देख सुखी न होय, इससे जैसे इन्द्र को काज बावन ने जो किया जो छल कर बलि का सारा राज ले दिया औ राजा बलि को पाताल पठाया, तैसे तुम हमारा काम करो तो एक बेर बृंदावन जाओ और देवकी के दोनो लड़को को जो बने तो छल बल कर यहाँ ले आओ।

कहा है जो बड़े हैं सो आप दुख सह करते हैं पराया काज, तिसमें तुम्हें तो है हमारी सब बात की लाज। अधिक क्या कहेगे जैसे बने वैसे उन्हें ले आओ, तो यहाँ सहजही में मारे जायँगे। कै तो देखते चानूर पछाड़ेगा, कै गज कुबलिया पकड़ चीर डालेगा, नहीं तो मैं ही उठ मारूँँगा, अपना काज अपने हाथ सँवारूँँगई। और उन दोनों को मार पीछे उग्रसेन को हनूँँगा, क्योंकि वह बड़ा कपटी है, मेरा मरना चाहता है। फिर देवकी के पिता देवक को आग से जलाय पानी में डबोऊँगा। साथ ही उसके बसुदेव को मार हरिभक्तो को जड़ से खोऊंगा, तब निकैदक राज कर जरासिंधु जो मेरा मित्र है प्रचंड, उसके त्रास से काँपते है नौखंड। औ नरकासुर, बामासुर, आदि बड़े बड़े महाबली राक्षस जिसके सेवक है तिससे जा मिलूँगा, जो तुम राम कृष्ण को ले आओ।

इतनी बातें कहकर कंस फिर अक्रूर को समझाने लगा कि तुम बृंदावन में जाय नंद के यहाँ कहियो जो शिव का यज्ञ है, धनुष धरा है औ अनेक प्रकार के कुतूहल वहाँ होयँगे। यह सुन