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ली, जैसे मछली बंसी को निगल प्राण देती है, तैसे मैने भी अपना जीव खोया।

इतना कह उसने बहुतेरे उपाय हाथ निकालने को किये पर एक भी काम न आया। निदान सांस रुक कर पेट फट गया तो पछाड़ खाय के गिरा तब उसके शरीर से लोहू नदी की भाँति बह निकली। तिस समय ग्वालबाल आय आय देखने लगे औ श्रीकृष्णचंद आगे जाय वन में एक कदम की छाँह तले खड़े हुए।

इस बीच बीन हाथ में लिए नारद मुनि जी आन पहुँचे, प्रनाम कर खड़े होय बीन बजाय श्रीकृष्णचंद की भूत भविष्य की सब लीला औ चरित्र गायके बोले कि कृपानाथ तुम्हारी लीला अपरंपार है, इतनी किस में सामर्थ है जो आपके चरित्रों को बखाने, पर तुम्हारी दया से मै इतना जानता हूँ कि आप भक्तो को सुख देने के अर्थ औं साधों की रक्षा के निमित्त औं दुष्ट असुरो के नाश करने के हेतु बार बार औतार ले संसार मे प्रगट हो भूमि का भार उतारते हो।

इतना बचन सुनतेही प्रभु ने नारद मुनि को तो बिदा दी। वे दंडवत कर सिधारे औ आप सब ग्वालबाल सखाओं को साथ लिये, एक बड़ के तले बैठ पहले तो किसी को मंत्री, किसी को प्रधान, किसी को सेनापति बनाये आप राजा हो राजरीति के खेल खेलने लगे औ पीछे आँखमिचौली। इतनी कथा कह श्रीशुकदेव जी बोले कि पृथ्वीनाथ,


मान्यों केसी भोर ही, सुनी कंस यह बात।
ब्योमासुर सो कहतु है, झंखत कंपत गात॥

अरि कुंदन ब्योमासुर बली। तेरी जग में कीरति भली॥