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ज्यों राम के पवन को पूत। त्यों ही तू मेरे यमदूत॥
बसुदेव के पूत हनि ल्याव। आजकाज मेरौ करि आव॥

यह सुन, कर जोड़ ब्योमासुर बोला―महाराज जो बसायगी सो करूंगा आज, मेरी देह है आप ही के काज। जो जी के लोभी हैं, तिन्हे स्वामी के अर्थ जी देते आती हैं लाज। सेवक औ स्त्री को तो इसी में जस धरम है जो स्वामी के निमित्त प्रान दे।

ऐसे कह कृष्ण बलदेव पर बीड़ा उठाय कंस को प्रनाम कुर ब्योमासुर बृंदाबन को चला। बाद में जाय ग्बाल का भेष बनाय चला चला वहाँ पहुँचा, जहाँ हरि ग्बालबाल सखाओं के साथ आँखमिचौली खेल रहे थे। जातेही दूर से जब उसने हाथ जोड़ श्रीकृष्णचंदसे कहा―महाराज, मुझे भी अपने साथ खिलाओ, तब हरि ने उसे पास बुला कर कहा–तू अपने जी में किसी बात की होसे मत रख जो तेरा मन माने सो खेल हमारे संग खेल। यो सुन वह प्रसन्न हो बोला कि वृक मेढ़े का खेल भला हैं। श्रीकृष्णचंद ने मुसकुराय के कहा―बहुत अच्छा, तू बन भेड़िया ओ सब ग्वालबाल होवे मेंढ़े। सुनते ही फूलकर व्योमासुर तो ल्यारो हुआ औ ग्बालबाल बने मेढ़े, भिलकर खेलने लगे।

तिस समै वह असुर एक एक को उठा ले जाय औ पर्बत की गुफा में रख उस के मुँह पर आड़ी सिला धर मूँद के चला आवे। ऐसे जब सब को वहाँ रख आया औ अकेले श्रीकृष्ण रहे, तब ललकार कर बोला कि आज कंस का काज सारूँगा औ सब यदुवंसियो को मारूँगा। यों कह ग्वाल का भेष छोड़ सचमुच भेड़िया बन जो हरि पर झपटा तो उन्होने उसको पकड़ गला घोट मारे घूसों के यों मार पटका कि जैसे यज्ञ के बकरे को मार डालते हैं।

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