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फल रहे हैं, तिनपर पंछी बैठे अनेक अनेक भाँति की मनभावन बोलियाँ बोलते है, औ बड़े बड़े निर्मल जल भरे सरोवर है, उनमे कॅवल खिले हुए, जिनपर भौरे के झुंड के झुंड गूँज रहे, औ तीर में हंस सारस आदि पक्षी कलोल कर रहे। सीतल सुगंध सनी मंद पौन बह रही, बड़ी बड़ी बाड़ियों की बाड़ो पर पनवाड़ियाँ लगी हुई। बीच बीच बरन बरन के फूलो की क्यारियाँ कोसो तक फूली हुई, ठौर ठौर इँदारो बावड़ियों पर रहद परोहे चल रहे, माली मीठे सुरों से गाय गाय जल सींच रहे।

यह शोभा बन उपवन की निरख हरष प्रभु सब समेत मथुरा पुरी में पैठे। वह पुरी कैसी है कि जिसके चहुँ ओर तांबे का कोट, औं पक्की चुनि चौड़ी खाई, स्फटक के चार फाटक, तिनमै अष्टधाती किवाड़ कंचन खचित लगे हुए, औ नगर में बरन बरन के राते पीले हरे धौले पंचखने सतखने मंदिर ऊँचे ऐसे कि घटा से बाते कर रहे, जिनके सोने के कलस कैलसियों की जोति बिजली सी चमक रही, ध्वजा पताका फहराय रही, जाली झरोखो भोखो से धूप की सुगंध आय रही, द्वार द्वार पर केले के खंभ औ सुवरन केलस से पल्लव भरे धरे हुए, तोरन बंदनवार बँधी हुई, घर घर बाजन बाज रहे, औ एक ओर भाँति भाँति के मनिमय कंचन के मंदिर राजा के न्यारेही जगमगाय रहे, तिनकी सोभा कुछ बरनी नहीं जाती। ऐसी जो सुंदर सुहावन मथुरा पुरी तिसे श्रीकृष्ण बलदेव ग्वालबालो को साथ लिये देखते चले।

परी धूम मथुरा नगर, आवत नन्द कुमार।
सुनि धाए पुर लोग सब, गृह को काज बिसार॥

और जो मथुरा की सुन्दरी। सुनत कान अति आतुर खरी॥