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इतनी बात के सुनतेही कंस ने बहुत से जोधाओं को बुलाके कहा—तुम इनके साथ जाओ औं कृष्ण बलदेव को छल बल कर अभी मार आओ। इतना बचन कंस के मुख से निकलतेही ये अपने अपने अस्त्र शस्त्र ले वहाँ गये जहाँ वे दोनो भाई खड़े थे। इन्होने उन्हें ज्यो ललकारा, त्यो विन्होने इन सबको भी आय मार डाला। जद हरि ने देखा कि यहाँ कंस का सेवक अब कोई नहीं रहा, तद बलरामजी से कहा भाई, हमें आए बड़ी बेर हुई, डेरो पर चलना चाहिये क्योकि बाबा नंद हमारी बाट देख देख भावना करते होयँगे। यो कह सब ग्वालबालो को साथ ले प्रभु बलराम समेत चलकर वहाँ आए, जहाँ डेरे पड़े थे। आते ही नंदमहर से तो कहा कि पिता, हम नगर में जाय भला कुतूहल देख आए, औ गोपग्वालो को अपने बारे दिखलाए।

तब लखि नंद कहै समुझाय। कान्ह तुम्हारी टेव न जाय॥
ब्रज बन नहीं हमारौ गाँव। यह है कंस राय की ठाँव॥
ह्याँँ जिन कळू उपद्रव करौ। मेरी सौख पूत मने धरौ॥

जब नंदरायजी ऐसे समझाय चुके, तद नंदलाल बड़े लाड़ से बोले कि पिता, भूख लगी है जो हमारी माता ने खाने को साथ कर दिया है सो दीजिए। इतनी बात के सुनतेही उन्होंने जो पदारथ खाने को साथ आया था सो निकाल दिया। कृष्ण बलदेव ने ग्वालबालो के साथ मिलकर खाय लिया। इतनी कथा कह श्रीशुकदेव मुनि बोले कि महाराज इधर तो ये आय परमानंद से ब्यालू कर सोये औ उधर श्रीकृष्ण की बाते सुन सुनकर कंस के चित्त में अति चिंता हुई तो उसे न बैठे चैन था न खड़े, मन ही