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पर आज इसके हाथ से बचोगे तब मैं जानूँगा कि तुम बड़े बली हो।

तबै कोपि हलधर कह्यो, सुन रे मूढ़ कुजात।
गज समेत पटकौ अबहि, मुख सँभार बहु बात।
नेकु न लगिहै बार, हाथी मरि जैहै अबहि।
तो सो कहत पुकार, अजहु मान मेरौ कह्यौ॥

इतनी बात के सुनतेही झुँझलाकर गजपाल ने गज पेला, जो वह बलदेवजी पर टूटा तो इन्होने हाथ घुमाय एक थपेड़ा ऐसा मारा कि वह सूँड़ सकोड़ चिघाड़ मार पीछे हटा। यह चरित्र देख कंस के बड़े बड़े जोधा जो खड़े देखते थे सो अपने जियों से हार मान मनहीं मन कहने लगे कि इन महा बलवानो से कौन जीत सकेगा, औ महावत भी हाथी को पीछे हटा जान अति भय मान जी में विचार करने लगा कि जो ये बालक न मारे जायँ तो कंस मुझे भी जीता न छोड़ेगा। यो सोच समझ उसने फिर अंकुस मार हाथी को तत्ता किया औ इन दोनों भाइयों पर हूल दिया। उसने आतेही सूँड़ से हरि को पकड़ पछाड़ खुनसाय जो दांतो से दबाया, तो प्रभु सूक्ष्म शरीर बनाय दांतो के बीच बच रहे।

डरपि उठे तिहि काल सब, सुर मुनि पुर नर नारि।
दुहूँ दुसन बिच ह्वै कढ़े, बलनिधि प्रभु दे तारि॥
उठे गजहि के साथ, बहुरि ख्यालही हांकि है॥
तुरतहि भये सनाथ, देखि चरित सबै स्याम के॥

हांक सुनत अति कोप बढ़ायौ। झटकि सूँड़ बहुरी गज धायौ॥
रहे उदर तर दबकि मुरारि। गये जानि गज रह्यों निहारि॥