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पैंतालीसवाँ अध्याय

श्रीशुकदेव मुनि बोले कि पृथ्वीनाथ, ऐसे कितनी एक बाते कर ताल ठोक चानूर तो श्रीकृष्ण के सोही हुआ, औ मुष्टक बलरामजी से आय भिड़ा। इनसे उनसे मल्ल युद्ध होने लगा।

सिर सो सिर भुज सो भुजा, दृष्ट दृष्ट सों जोरि।
चरन चरन गहि झपट कै, लपटत झपट झंकारि॥

उस काल सब लोग उन्हें इन्हें देख देख आपस में कहने लगे कि भाइयो, इस सभा में अति अनीति होती हैं, देखो कहाँ ये बालक रूपनिधान, कहाँ ये सबल मल्ल वज्र समान । जो बरजे तो कंस रिसाय, न बरजे तो धर्म जाय, इससे अब यहाँ रहना उचित नहीं, क्योकि हमारा कुछ बस नहीं चलता।

महाराज, इधर तो ये सब लोग यो कहते थे और उधर श्रीकृष्ण बलराम मल्लो से मल्लयुद्ध करते थे। निदान इन दोनो भाइयों ने उन दोनो मल्लो को पछाड़ मारा। विनके मरतेही सब मल्ल आय टूटे। प्रभु ने पल भर मे तिन्हे भी मार गिराया। तिस समै हरिभक्त तो प्रसन्न हो बाजन बजाय बजाय जैजैकार करने लगे औ देवता आकाश से अपने विमानो में बैठे कृष्णजस गाय गाय फूल बरसावने। औ कंस अति दुख पाय व्याकुल हो रिसाय अपने लोगो से कहने लग—अरे बाजे क्यो बजाते हो, तुम्हे क्या कृष्ण की जीत भाती है।

यो कह बोला―ये दोनों बालक बड़े चंचल हैं, इन्हें पकड़ बॉध सभा से बाहर ले जाओ और देवकी समेत उग्रसेन बसुदेव