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उन्होने पौढ कर अति सुख पाया और मारग का श्रम सब गँवाया। कितनी एक बेर में जो ऊधोजी सोके उठे, तो नंदमहर उनके पास जा बैठे औ पूछने लगे कि कहो ऊधोजी, सूरसेन के पुत्र हमारे परम मित्र वसुदेवजी कुटुंब सहित आनंद से हैं, औं हमसे कैसी प्रीति रखते है, यो कह फिर बोले―

कुशल हमारे सुत की कहौ। जिनके संग सदा तुम रहौ॥
कबहूं वे सुधि करत हमारी। उन बिन दुख पावत हम भारी॥
सब ही सो आवन कह गये। बीती अवध बहुत दिन भये॥

नित उठ जसोदा दही बिलोय माखन निकाल हरि के लिये रखती है। उसकी औ ब्रजयुवतियों की, जो उनके प्रेम रंग में रँगी है सुरत कभू कान्ह करते हैं कै नहीं?

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेव जी ने राजा परीक्षित से कहा कि पृथीनाथ, इसी रीति से समाचार पूछते पूछते औ श्रीकृष्णचंद की पूर्व लीला गाते गाते, नंदराथजी तो प्रेम रस भीज, इतना कह, प्रभु को ध्यान धर अवाक हुए कि―

महाबली कंसादिक मारे। अब हम काहे कृष्ण बिसारे॥

इस बीच अति व्याकुल हो, सुध बुध देह की बिसारे, मन मारे, रोती जसोदा रानी ऊधोज के निकट आय रामकृष्ण की कुशल पूछ बोली―कहो ऊधोजी, हरि हम बिन वहाँ कैसे इतने दिन रहे औ क्या संदेसा भेजा है? कब आय दरसन देगे? इतनी बात के सुनते ही पहले तो ऊधोज ने नंद जसोदा को श्रीकृष्ण बलराम की पाती पढ़ सुनाई, पीछे समझा कर कहने लगे कि जिनके घर में भगवान ने जन्म लिया औ बाललीला कर सुख दिया, तिनकी महिमा कौन कह सके। तुस बड़े भगवान हो क्यौकि