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के निकट जाय, रज सिर चढ़ाय, हाथ जोड़, कालिन्दी की अति स्तुति गाय, आचमन कर जल में पैठे, है न्हाय धोय सन्ध्या पूजा तरपन से निश्चित हो लगे जप करने। उसी समै सब ब्रजयुवतियाँ भी उठीं, औ अपना अपना घर झाड़ बुहार लीप पोत धूप दीप कर लगीं दधि मथने।

दधि कौ मथन मेघ सौ गाजै। गावे नूपुर की धुनि बाजै॥

दधि मथि कै माखन लियौ, कियौ गेह कौ काम।
तब सब मिल पानी चलीं, सुन्दरि ब्रज की बाम॥

महाराज, वे गोपियाँ श्रीकृष्ण के वियोग-मद-मतियाँ उनका ही जस गातियाँ, अपने अपने झुंड लिये, प्रीतम का ध्यान दिये बाट में प्रभु की लीला गाने लगीं।

एक कहै मुहि मिले कन्हाई। एक कहै वे भजे लुकाई॥
पाछे ते पकरी मो बाँह। वे ठाढ़े हरि बद की छाँह॥
कहत एक गो दोहत देखे। बोली एक भोरही पेखें॥
एक कहै वे धेनु चरावे। सुनहु कान दै बेनु बजावें॥
या मारग हम जाँय न माई। दानि मांगिहै कुँवर कन्हाई॥
गागरि फोरि गाँठि छोरिहै। नेक चितै कै चित्त चोरिहै॥
है कहूँ, दुरे दौरि आयहै। तब हम कहाँ जान पायहैं॥
ऐसे कहते चली ब्रजनारी। कृष्ण बियोग बिकल तन भारी॥