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बहुत सी मिठाई, घर में जाय ले आई, औ ऊधोजी को देके कहा कि यह तुम श्रीकृष्ण बलराम प्यारे को देना, औ बहन देवकी से यो कहना कि मेरे कृष्ण बलराम को भेज दे, विरमाय न रक्खे। इतना संदेसा कह नंदरानी अति व्याकुल हो रोने लगी, तब नन्दजी बोले कि ऊधोजी हम तुमसे अधिक क्या कहें, तुम आप चतुर, गुनवान, महाजान हो, हमारी ओर हो प्रभु से ऐसे जाय कहियो, जो वे ब्रजवासियों का दुख विचार वेग आय दरसन दे औ हमारी सुध न बिसारे।

इतना कह जब नन्दाय ने आँसू भर लिये औ जितने ब्रजबासी क्या स्त्री या पुरुष वहाँ खड़े थे सो भी सब लगे रोने, तब ऊधोजी विन्हें समझाय बुझाय असा भरोसा दे ढाढ़स बँधाय बिदा हो रोहनी को साथ ले मथुरा को चले, औ कितनी एक बेर में चले चले श्री कृष्णचंद के पास आ पहुँचे।

इन्हें देखतेही श्रीकृष्ण बलदेव उठकर मिले औ बड़े प्यार से इनकी क्षेम कुशल पूछ बृंदाबन के समाचार पूछने लगे। कहो ऊधो जी, नंद जसोदा समेत सब ब्रजवासी आनन्द से हैं, औ कभी हमारी सुरत करते हैं कि नहीं? ऊधोजी बोले―महाराज, ब्रज की महिमा औ ब्रजवासियों को प्रेम मुझसे कुछ कहा नहीं जाता, उनके तो तुम्ही हो प्रान, निस दिन करते हैं वे तुम्हारा ही ध्यान औ ऐसी देखी गोपियों की प्रीति, जैसी होती है पूरन भजन की रीति। आपको कहा जोग का उपदेस जा सुनाया, पर मैने भजन को भेद उनहीं से पाया।

इतना समाचार कह ऊधोजी बोले कि दीनदयाल, मैं अधिक क्या कहूँ, आप अंतरजामी घट घट की जानते है, थोड़े ही में