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समझिये कि ब्रज में क्या जड़ क्या चैतन्य सब आपके दरस परस बिन महादुखी है, केवल अवध की अस कर रहे है।

इतनी बात के सुनते ही जद दोनो भाई उदास हो रहे, तद ऊधो जी तो श्रीकृष्णचन्द से बिदा हो नंद जसोदा का संदेसा वसुदेव देवकी को पहुँचाय अपने घर गये, औ रोहिनीजी श्रीकृष्ण बलराम से मिल अति आनन्द कर निज मंदिर में रहीं।