पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/२२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १७५ )


कुछ छिपी नहीं। यो कह अक्रूरजी तो कुंती का कहा संदेसा सुनाय विदा हो अपने घर गए औ सब समाचार सुन श्रीकृष्ण बलदेव जो हैं सब देवन के देव सो लोकरीति से बैट चिंता कर भूमि का भार उतारने का विचार करने लगे। इतनी कथा श्रीशुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को सुनायकर कहा कि हे पृथीनाथ, यह जो मैने ब्रजबन मथुरा का जस गाया, सो पूर्वार्ध कहाया। अब आगे उत्तरार्ध गाऊँगा, जो द्वारकानाथ का बल पाऊँगा।