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रथ से उतर जरासंघ को बाँध लिया। इसमें श्रीकृष्णचंदजी ने जा बलराम से कहा कि भाई, इसे जीता छोड़ दो, मारो मत, क्यौकि यह जीता जायगा तो फिर असुरों को साथ ले आवेगा, तिन्हें मार हम भूमि का भार उतारेगे, औ जो जीता न छोड़ने तो जो राक्षस भाग गये है सो हाथ न आवेगे। ऐसे बलदेवजी को समझाय प्रभु ने जरासंध को छुड़वाय दिया। वह अपने विन लोगों में गया जो रन से भाग के बचे थे।

चहुँ दिस चाहि कहै पछताय। सिगरी सेना गई बिलाय॥
भयो दुःख अति कैसे जीजै। अब घर छाडि तपस्या कीजै॥
मन्त्री तबै कहै समझाय। तुमस झानी क्यो पछताये॥
कबहूँ हार जीत पुनि होइ। राज देस छोड़े नहि कोइ॥

क्या हुआ जो अब की लड़ाई में हारे। फिर अपना दल जोड़ लावेगे औ सब यदुबंसियों समेत कृष्ण बलराम को स्वर्ग पठावेगे। तुम किसी बात की चिन्ता मत करो। महाराज, ऐसे समझाय बुझाय जो असुर रन से भाग के बचे थे तिन्हे औ जरासंध को मन्त्री ने घर ले पहुँचाया, औ वह फिर वहाँ कटक जोड़ने लगा। यहाँ श्रीकृष्ण बलराम रनभूमि में देखते क्या है कि लोहू की नदी बह निकली है, तिसमें रथ बिना रथी नाव से बहे जाते हैं। ठौर ठौर हाथी मरे पहाड़ से पड़े दृष्ट आते है। उनके घावों से रक्त झरनों की भाँति झरता है तहाँ महादेवजी भूत प्रेत संग लिये अति आनन्द कर नाच नाच गाय गाय मुंडो की माला बनाय बनाय पहनते है। भूतनी प्रेतनी जगिनियाँ खप्परो भर भर रक्त पीती है, गिद्ध, गीदड़, काग लोथों पर बैठ बैठ मास खाते है औ आपस में लड़ते जाते है।