पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/२२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १८३ )


आपस में कहने लगे कि मथुरा में समुद्र कहाँ से आया, यह भेद कुछ जाना नहीं जाता।

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा पृथ्वीनाथ, ऐसे सब यदुबंसियो को द्वारका में बसाय श्रीकृष्णचंद- जी ने बलदेवजी से कहा कि भाई अब चलके प्रजा की रक्षा कीजे औ कालयवन का बध। इतना कह दोनो भाई वहाँ से चल ब्रज- मंडल में आए।




_______