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लगी, तो खेल समैं सब सखियाँ उसे कहने लगीं कि रुक्मिनी, तू हमारा खेल खोने को आई है, क्योंकि जहाँ तू हमारे साथ अँधेरे में छिपती है तहाँ तेरे मुखचंद की जोत्ति से चाँदना हो जाता है इससे हम छिप नहीं सकतीं। यह सुन वह हँसकर चुप हो रही।


इतनी कथा क्ह श्रीशुकदेवजी ने कहा कि महाराज, इसी भाँति वह सखियों के संग खेलती थी औ दिन दिन छबि उसकी दूनी होती थी कि इस बीच एक दिन नारदजी कुंडलपुर में आए, औ रुक्मिनी को देख, श्रीकृष्णचंद के पास द्वारका में जाय डन्होने कहा कि महाराज, कुंडलपुर में राजा भीष्मक के घर एक कन्या, रूप, गुन, शील की खान, लक्ष्मी की समान जन्मी है सो तुम्हारे योग्य है। यह भेद जब नारद मुनि से सुन पाया, तभी से रात दिन हरि ने अपना मन उसपर लगाया। महाराज, इस रीति करके तो श्रीकृष्णचंद ने रुक्मिनी का नाम गुन सुना, और जैसे रुक्मिनी ने प्रभु का नाम औ जस सुना सो कहता हूँ कि एक समै देस देस के कितने एक जाचकों ने जाय कुंडलपुर में श्रीकृष्णचंद का उस गाय जैसे प्रभु ने मथुरा में जन्म लिया, औ गोकुल बृंदावन में जाय ग्वाल बालों के संग भिल बालचरित्र किया, और असुरों को मार भूमि का भार उतार यदुबंसियों को सुख दिया था तैसेही गाय सुनाया। हरि के चरित्र सुनतेही सब नगरनिवासी अति आश्चर्य कर आपस में कहने लगे कि जिनकी लीला हमने कानो सुनी तिन्हें कब नैनो देखैगे। इस बीच जाचक किसी ढब से राजा भीष्मक की सभा में जाय प्रभु के चरित्र और गुन गाने लगे। उस काल–