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भीष्मक के चित्त से किसी की बात कुछ न आई। तब उनका बड़ा बेटा, जिसका नाम रुक्म, सो कहने लगा कि पिता, नगर चंदेरी* का राजा सिसुपाल अति बलवान है और सब भाँति से हमारी समान। तिससे रुक्मिनी की सगाई वहाँ कीजे औं जगत् मै जस लीजे। सहाराज, जब उसकी भी बात राजा ने सुनी अनसुनी की तब तो रुक्मकेश नाम उनका छोटा लड़का बोला―

रुक्मिनी पिता कृष्ण को दीजै। बसुदेव सो सगाई कीजै॥
यह सुनि भीष्मक हरषे गति। कही पूत तैं नीकी बात॥
तू बालक सबसो अति ज्ञानी। तेरी बात भली हम पानी॥

कहा है―

छोटे बड़ेनि पूछ के, कीजै मन परतीत।
सार बचन गह लीजिये, याही जग की रीति॥

ऐसे कह फिर राजा भीष्मक बोले―यह तो रुक्मकेश ने भली बात कही। यदुबंसियों में राजा सूरसेन बड़े जसी और प्रतापी हुए, तिनही के पुत्र बसुदेवजी है, सो कैसे हैं, कि जिनके घर में आदिपुरुष अविनाशी सकल देवन के देव श्रीकृष्णचंदजी ने जन्म ले महाबली कंसादिक राक्षसों को मारा औ भूमि का भार उतार यदुकुल को उजागर किया और सव यदुबंसियो समेत प्रजा को सुख दिया। ऐसे जी द्वारकानाथ श्रीकृष्णचंदजी को रुक्मिनी दे, सो जगल मे जस औ बड़ाई ले। इतनी बात के


  • ( ख ) प्रति में “चेदि” पाठ हैं। “चेदि” एक राज्य का नाम है और चँदेरी उस राज्य का मुख्य नगर है। अतएव चेदि लिखना अधिक उपयुक्त होतर पर ग्रंथकार ने चँदेरी का प्रयोग किया है इस लिये वह ज्यो का त्यो रहने दिया गया है।