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सुनतेही सब सभी के लोग अति प्रसन्न हो बोले कि महाराज, यह तो तुमने भली बिचारी। ऐसा बर घर और कहीं न मिलेगा, इससे उत्तम यही है कि श्रीकृष्णचंदही को रुक्मिनी व्याह दीजे। महाराज, जब सब सभा के लोगों ने यो कहा तब राजा भीष्मक का बड़ा बेटा जिसका नाम रुक्म, सो सुन निपट झुँझलायके बोला-

समझ न बोलत महा गॅवार। जानत नहीं कृष्ण व्यौहार॥
सोरह बरस नंद के रह्यौ। तब अहीर सब काहू कह्यौ॥
कामरि ओढ़ी, गाय चराई। बरहे बैठि छाक तिन खाई॥

वह तो गॅवार ग्वाल है, विसकी जात पाँत का क्या ठिकाना, और जिसके माँ बापही का भेद नहीं जाना जाता, उसे हम पुत्र किसको कहैं। कोई नंद गोप को जानता है, कोई बसुदेव का कुर मानता है, पर आज तक यह भेद किसी ने नहीं पाया कि कृष्ण किसका बेटा है। इसी से जो जिसके मन में आता है सो गाता है। हम राजा, हमें सब कोई जानता मानता है और यदु- बंसी राजा कब भये। क्या हुआ जो थोड़े दिनो से बलकर उन्होंने बड़ाई पाई, पहला कलंक तो अब न छूटेगा। वह उग्रसेन का चाकर कहता है, विससे सगाई कर क्या हम कुछ संसार में जस पावेगे। कहा है ब्याह, बैर और प्रीति समान से करिये तो शोभा पाइये, और जो कृष्ण को देगे तो लोग कहैंगे ग्वाल का सारा तिससे सच जायगा नाम औ जस हमारी।

महाराज, यो कह फिर रुक्म बोली कि नगर चंदेरी का राजा सिसुपाल बड़ा बली औ प्रतापी है, उसके डर से सब थरथर काँपते है, और परंपरा से उसके घर में राजगादी चली आती है। इससे अब उत्तम यही है कि रुक्मिनी उसी को दीजे, और