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पचपनवांं अध्याय

श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, कितनी एक दूर जाय श्रीकृष्णचंद ने रुक्मिनीजी को सोच संकोचथुत देखकर कहा कि सुंदरि, अब तुम किसी बात की चिंता मत करो। मैं शंखध्वनि कर तुम्हारे मन का सब डर हरूँगा औ द्वारका में पहुँच वेद की विधि से बरूँगा। यो कह प्रभु ने उसे अपनी माला पहिराय, बाई ओर बैठाय, ज्यो शंखध्वनि करी, त्यो सिसुपाल औं जरासंध के साथी सबै चौक पड़े। यह बात सारे नगर में फैल गई कि हरि रुक्मिनी को हर ले गये।

इसमें रुक्मिनीहरन अपने विन लोगों के मुख से सुन कि जो चौकसी को राजकन्या के संग गए थे, राजा सिसुपाल औ जरासंध अति क्रोध कर, झिलम टोप पहने, पेटी बाँध, सब शस्त्र लगाय अपना अपना कटक ले लड़ने को श्रीकृष्ण के पीछे चढ़ दौड़े औ उनके निकट जाय, आयुध सँभाल सँभाल ललकारे। अरे, भागे क्यौ जाते हो, खड़े रहो, शस्त्र पकड़ लड़ो, जो क्षत्री सूर बीर है वे खेत में पीठ नहीं देते। महाराज, इतनी बात के सुनतेही यादव फिर सनमुख हुए और लगे दोनों ओर से शस्त्र चलने। उस काल रुक्मिनी बाल अति भय मान घूँघट की ओट किये, आँसू भर भर लंबी सांसे लेती थी औ प्रीतम का मुख निरख निरख मनही मन बिचारकर यो कहती थी कि ये मेरे लिये इतना दुख पाते हैं। अंतरजामी प्रभु रुक्मिनी के मन का भेद जान बोले कि सुंदरि, तू क्यौ डरती है, तेरे देखतेही देखते सब असुरदल को मार भूमि का