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इस बीच नारदजी ने अयि सुबको समझायकर कहा कि तुम आलक के जाने की कुछ भावना मत करो, विसे किसी बात का डर नहीं, वह कहीं जाय पर उसे काल न व्यापैगा, और बालापन वितीत कर एक सुंदर नारी साथ लिये तुम्हें आय मिलेगा। महाराज, ऐसे सब यदुबंसियों को भेद बताय समझाय बुझाय नारद मुनि जब बिदा हुए, तब वे भी सोच समझ संतोष कर रहे।

अब आगे कथा सुनिये कि संबर जो प्रद्युम्न को ले गया था, उसने उन्हें समुद्र में डाल दिया। वहाँ एक मछली ने इन्हे निगल लिया। उस मछली को एक और बड़ी मछली निगल गई। इसमे एक मछुए ने जाय समुद्र में जो जाल फेका, तो वह मीन जाल में आई। धीमर जाल खैंच, उस मच्छ को देख, अति प्रसन्न हो ले अपने घर आया। निदान वह मछली उसने जा राजा संबर को भेट दी। राजा ने ले अपने रसोईघर में भेज दी। रसोई करने वाली ने जो उस मछली को चीरा तो उसमें से एक और मछली निकली। विसका पेट फाड़ा तो एक लड़का स्यामबरन अति सुंदर उसमें से निकला। उसने देखतेही अति अचरज किया औ वह लड़का ले जाय रति को दिया, उसने महा-प्रसन्न हो ले लिया। यह बात संबर ने सुनी तो रति को बुलायकै कहा कि इस लड़के को भली भाँति से यत्न कर पाल। इतनी बात राजा की सुन रति उस लड़के को ले निज मंदिर मे आई। उस काल नारदजी ने जाय रति से कहा-

अब तू याहि पाल चितलाय। पति प्रदमन प्रगट्यौ आय॥
संबर मार तोहि लै जैहै। बालापन या ठौर बितैहै॥

इतना भेद बताय नारद मुनि तो चले गए और रति अति