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दपटकै गदा चलाई, तो प्रद्युम्नजी ने सहजही काट गिराई। फिर उसने रिसाय कर अग्निबान चलाये, इन्होंने जलबान छोड़ बुझाय गिराए। तब तो संबर ने महा क्रोध कर जितने आयुध उसके पास थे सब किये औइन्होने काट काट गिराय दिये। जद कोई आयुध उसके पास न रहा, तद क्रोध कर धाय प्रद्युम्नजी जाय लिपटे औ दोनो मे मल्लयुद्ध होने लगा। कितनी एक बेर पीछे ये उसे आकाश को ले उड़े, वहाँ जाय खड्ग से उसका सिर काट गिराय दिया और फिर असुरदल का बध किया।

संबर को मारा रति ने सुख पाया औ विसी समय एक विमान स्वर्ग से आया, उसपर रति पति दोनो चढ़ बैठे और द्वारका को चले ऐसे कि जैसे दामिनी समेत सुन्दर मेघ जाता हो और चले चले वहाँ पहुँचे कि जहाँ कंचन के मंदिर ऊँचे सुमेरु से जगमगाय रहे थे। विमान से उतर अचानक दोनों रनवास में गये, इन्हें देख सब सुन्दरी चौक उठी और यो समझ कि श्रीकृष्ण एक सुंदरी नारी संग ले आए सकुच रहीं। पर यह भेद किसी ने न जाना कि प्रद्युम्न है। सब कृष्ण ही कृष्ण कहती थीं। इसमें जब प्रद्युम्नजी ने कहा कि हमारे माता पिता कहाँ हैं, तब रुक्मिनी जी अपनी सखियो से कहने लगी-हे सखी, यह हरि की उनहार कौन है? वे बोलीं-हमारी समझ मे तो ऐसा आता है कि हो न हो यह श्रीकृष्णही का पुत्र है। इतनी बात के सुनतेही रुक्मिनी जी की छाती से दूध की धार बह निकली औ बाई बाह फड़कने लगी और मिलने को मन घबराया पर बिन पति की आज्ञा मिल न सकी। उस काल वहाँ नारदजी ने आय पूर्व कथा कह सबके मन का संदेह दूर किया, तब तो रुक्मिनीजी ने दौड़कर पुत्र का सिर चूम उसे छाती से लगाया और रीति भाँति से ब्याहकर