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विन्हीं को देखते देखते वहाँ जाय पहुँचे जहाँ सिह ने तुरंग समेत प्रसेन को मार खाया था। दोनों की लोथ और सिंह के पाओ का चिह्न देख सबने जाना कि उसे सिंह ने मार खाया।

यह समझ मनि न पाय श्रीकृष्णचंद सबको साथ लिये लिये वहाँ गये, जहाँ वह औंड़ी अँवेरी महा भयावनी गुफा थी। उनके द्वार पर देखते क्या है कि सिह मरा पड़ा है पर मनि वहाँ भी नहीं। ऐसा अचरज देख सब श्रीकृष्णजी से कहने लगे कि महाराज, इस बन मे ऐसा बली जंतु कहाँ से आया जो सिंह को भार भनि ले गुफा*[१] में पैठा। अब इसका कुछ उपाय नहीं, जहाँ तक ढूँढ़ने का धर्म था तहाँ तक आपने ढूँढ़ा। तुम्हारा कलंक छूटा, अब नाहर के सिर अपजस पड़ा।

श्रीकृष्णजी बोले-चलो इस गुफा मे धसके देखे कि नाहर को मार मनि कौन ले गया। वे सब बोले कि महाराज, जिस गुफा का मुख देखे हमे डर लगता है विसमें धसेगे कैसे? बरन हम तुमसे भी विनती कर कहते है कि इस महाभयावनी गुफा मे आप भी न जाइये, अब घर को पधारिये। हम सब मिल नगर में कहैगे कि प्रसेन को मार सिंह ने मनि ली औ सिंह को मार मनि ले कोई जंतु एक अति डरावनी औंड़ी गुफा में गया, यह हम सब अपनी आँखों देख पाए। श्रीकृष्णचंद बोले मेरा मन मनि में लगा है, मै अकेला गुफा में जाता हूँ, दस दिन पीछे आऊँगा, तुम दस दिन तक यहाँ रहियो, इसमें हमे बिलंब होय तो घर जाय संदेसा कहियो। महाराज, इतनी बात कह हरि उस अँधेरी भयावनी गुफा में पैठे और चले चले वहाँ पहुँचे जहाँ


  1. *(ख) में 'गुहा'