पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २४ )


थे। २५२ वैष्णवो की वार्ता में इनका हाल लिखा है। इनकी कविता प्रभावोत्पादक और मधुर है। इनके बनाए हुए निम्नलिखित ग्रंथो का पता लगा है--सिद्धांत पंचाध्यायी, रासपंचाध्यायी, रुक्मिणी मंगल, अनेकार्थमंजरी, रूपमंजरी, रसमंजरी, विरहमंजरी, नाम- मंजरी, नासकेतु पुराण गद्य, श्यामसगाई, सुदामा चरित्र, भ्रमर- गीत और विज्ञानार्थप्रकाशिका नामक ग्रंथ की टीका। इनकी रचना में दो गद्यग्रंथ है, पर अप्राप्य है। इससे उदाहरण नहीं दिया।

गंग भाट‌

सं० १६२७ वि० में इन्होंने 'चंद छंद बरनन की महिमा' नाम की एक पुस्तक खड़ी बोली के गद्य में लिखी । इसमें १६ पृष्ठ हैं । दो वर्ष अनंतर विष्णुदास ने प्रतिलिपि की थी। उदा०——

'इतना सुनके पातशाहाकी श्रीअकबरशाहाजी आध सेर सोना नरहरदास चारण को दिया इनके डेढ़ सेर सोना हो गया । रास बंचना पूरन भया श्रमकास बरकास हुआ जीसका संवत १६२७ का मेती मधुमास सुदी १३ गुरुवार के दिन पूरन भये ।'

हरिराय जी‌

गो० विट्ठलनाथजी तथा गोकुलनाथजी के समकालीन ज्ञात होते है। इनकी निम्रलिखित पुस्तको का पता लगा है-श्रीआ- चार्यजी महाप्रभून को द्वादस निजवार्ता, श्रीआचार्यजी महाप्रभून के सेवक चौरासी वैष्णवो की वार्ता, श्रीआचार्यजी महप्रभून की निजवाता वा घरू वार्ता, ढोलामारू की वार्ता, भांगवती के लक्षण,