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काठ के बैल खड़े होय। प्रभु सातो को नाथ एक रस्सी में गाँथ राजसभा में ले आए। यह चरित्र देख सब नगरनिवासी तो क्या स्त्री क्या पुरुष अचरज कर धन्य कहने लगे औ राजा नगनजित ने उसी समैं पुरोहित को बुलाय, वेद की विधि से कन्यादान दिया। तिसके यौतुक मे दस सहस्र गाय, नौ लाख हाथी, दस लाख घोड़े, तिहत्तर रथ दे, दास दासी अनगिनत दिये। श्रीकृष्णचंद सब ले वहाँ से जब चले, तब खिजलाय सब राजाओ ने प्रभु को मारग में आन घेरा। तहाँ मारे बानो के अर्जुन ने सबको मार भगाया, हरि आनंद मंगल से सब समेत द्वारकापुरी पहुँचे। उस काल सब द्वारकावासी आगे आय प्रभु को बाजे गाजे से पाटंबर के पाँवड़े डालते राजमंदिर में ले गये औ यौतुक देख सब अचंभे रहे।

नगनजीत की करत बड़ाई। कहत लोग यह बड़ी सगाई॥
भलो ब्याह कौसलपति कियौ। कृष्णहि इतौ दायजौ दियो॥

महाराज, नगरनिवासी तो इस ढब की बातें कर रहे थे कि उसी समय, श्रीकृष्णचंद औ बलरामजी ने वहाँ आके राजा नगनजित का दिया हुआ सब दायजा अर्जुन को दिया औ जगत में जस लिया। आगे सब जैसे श्रीकृष्णजी भद्रा को ब्याह लाये सो कथा कहता हूँ, तुम चित लगाय सुनौ। केकय देस के राजा की बेटी भद्रा ने स्वयंबर किया औ देस देस के नरेसो को पत्र लिखे। वे जाय इकट्ठे हुए।

तहाँ श्रीकृष्णचंद भी अर्जुन को साथ ले गये और स्वयंबर के बीच सभा में जा खड़े रहे। जब राजकन्या माला हाथ में लिये सब राजाओ को देखती भालती रूपसागर, जगत-उजागर