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श्रीकृष्णचंद के निकट आई तो देखतेही भूल रही औ उसने माला इनके गले में डाली। यह देख उसके मात पिता ने प्रसन्न हो वह कन्या हरि को बेद की विधि से ब्याह दी। विसके दायज में बहुत कुछ दिया कि जिसका वारापार नहीं।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, श्रीकृष्णचंद भद्रा को तो यो ब्याह लाए, फिर जैसे प्रभु ने लक्षमना को ब्याहा सो कथा कहता हूँ तुम सुनौ। भद्र देस का नरेस अति बली औ बड़ा प्रतापी, सिसकी कन्या लक्षमना जब ब्याहन जोग हुई, तब उसने स्वयंबर कर चारो देसो के नरेसो को पत्र लिख लिखे बुलाया। वे अति धूमधाम से अपनी अपनी सेना साज वहाँ आए औ स्वयंबर के बीच बड़े बनाव से पांति पांति जा बैठे।

श्रीकृष्णचंदजी भी अर्जुन को साथ लिए तहाँ गये और जो स्वयंबर के बीच जो खड़े भये, तो लछमना ने सबको देख आ श्रीकृष्णजी के गले में माला डाली। आगे उसके पिता ने वेद की विधि से प्रभु के साथ लक्षमना का ब्याह कर दिया। सब देस देस के नरेस जो वहाँ आए थे सो महा लज्जित हो आपस में कहने लगे, कि देखे हमारे रहते किस भाँति कृष्ण लक्षमना को ले जाता है।

ऐसे कह वे सब अपना अपना दल साज मारग रोक जा खड़े हुए। जो श्रीकृष्णचंद औ अर्जुन लक्षमना समेत रथ ले आये बढ़े, तो विन्होने इन्हें आय रोका और युद्ध करने लगे। निदान कितनी एक बेर में मारे बानो के अर्जुन औ श्रीकृष्णजी ने सबको मार भगाया और आप अति आनंद मंगल से नगर द्वारका पहुँचे। इनके जातेही सारे नगर में घर घर-