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अस्त्र शस्त्र धारन कर श्रीकृष्णचंदजी के सनमुख लड़ने को जा खड़े हुए। पीछे से भौमासुर ने अपने सेनापति औ मुर के बेटो से कहला भेजा कि तुम सावधानी से युद्ध करो मैं भी आवता हूँ।

लड़ने की आज्ञा पातेही सब असुरदल साथ ले मुर के बेटो समेत भौमासुर का सेनापति श्रीकृष्णजी से युद्ध करने को चढ़ आया औ एकाएकी प्रभु के चारो ओर सब कटक दल बादल सा जाय छाया। सब ओर से अनेक अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र भौमासुर के सूर श्रीकृष्णचंद पर चलाते थे औ वे सहज सुभावही काट काट ढेर करते जाते थे। निदान हरि ने श्रीसतिभामाजी को महा भयातुर देख असुर दल को मुर के सात बेटो समेत सुदरसन चक्र से बात की बात मे यो काट गिराया कि जैसे किसान ज्वार की खेती को काट गिरावे।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा कि महाराज, मुर के पुत्रो समेत सब सेना कटी सुन, पहले तो, भौमासुर अति चिन्ता कर महा घबराया, पीछे कुछ सोच समझ धीरज कर कितने एक महाबली राक्षसो को अपने साथ लिये, लाल लाल आँखें क्रोध से किये, कसकर फेट बांधे, सर साधे, बकता झकता श्रीकृष्णजी से लड़ने को आय उपस्थित हुआ। जों भौमासुर ने प्रभु को देखा तो उसने एक बार अति रिसाय मूठ की मूठ बान चलाए, सो हरि ने तीन तीन टुकड़े कर काट गिराए, उस काल-

काढ़ खड़ग भौमासुर लियौ। कोपि हंकारि कृष्ण उर दियौ।
करै शब्द अति मेघ समान। अरे गंवार न पावै जान॥
करकस पवन तहाँ उच्चरै। महायुद्ध भौमासुर करै॥