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सुनाया, कि तुम जाय इंद्र से कहो जो सतिभामा तुमसे कल्पवृक्ष माँगती है। देखो वह क्या कहता है? इस बात का उत्तर मुझे ला दो पीछे समझा जायगा। महाराज, इतनी बात श्रीकृष्णचंदजी के मुख से सुन नारदजी ने सुरपति से जाय कहा कि सतिभामा तुम्हारी भौजाई तुमसे कल्पतरु माँगती है, तुम क्या कहते हो सो कहो, मैं उन्हे जाय सुनाऊँ कि इंद्र ने यह कहा। इस बात के सुनतेही इंद्र पहले तो हकबकाय कुछ सोच रहा, पीछे उसने नारदमुनि का कहा सब इंद्रानी से जाय कहा।

इंद्रानी सुन कहै रिसाय। सुरपति तेरी कुमति न जाय॥
तू है बड़ौ मूढ़ पति अँधु। को है कृष्ण कौन को बँधु॥

तुझे यह सुध है कै नही, जो उसने ब्रज मे से तेरी पूजा मेट प्रजवासियो से गिर पुज्वाय, छल कर तेरी पूजा का सब पकवान आप खाया। फिर सात दिन तुझे गिर पर बरसवाय उसने तेरा गर्व गँवाय सब जगत मे निरादर किया। इस बात की कुछ तेरे ताई लाज है कै नहीं। वह अपनी स्त्री की बात मानता है, तू मेरा कहा क्यो नहीं सुनता।

महाराज, जब इंद्रानी ने इंद्र से यो कह सुनाया तब वह अपना सा मुँह ले उलट नारदजी के पास आया और बोला-हे ऋषिराय, तुम मेरी ओर से जाय श्रीकृष्णचंद से कहो कि कल्पवृक्ष नंदन बन तज अनत न जायगा औ जायगा तो वहाँ किसी भाँति न रहेगा। इतना कह फिर समझाके कहियो जो आगे की भाँति अब यहाँ हमसे बिगाड़ न करें, जैसे ब्रज में ब्रजवासियो को बहकाय गिरि का मिस कर सब हमारी पूजा की सामा खाय गये, नहीं तो महा युद्ध होगा।