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भयौ बेद विधि मंगलचार! ऐसे हरि बिहरत संसार॥
सोलह सहस एक सौ ग्रेहा। रहत कृष्ण कर परम सनेहा॥
पटरानी आठो जे गनी। प्रीति निरंतर तिनसों धनी॥
इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी बोले कि हे राजा, हरि ने ऐसे भौमासुर को बध किया औ अदिति का कुंडल और इंद्र का छत्र ला दिया। फिर सोलह सहस्र एक सौ आठ विवाह कर श्रीकृष्णाचद द्वारका पुरी में आनंद से सबको ले लीला करने लगे।