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बासठवाँ अध्याय

श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, सोलह सहस्र एक सौ आठ स्त्रियों को ले श्रीकृष्णचंद आनद से द्वारकापुरी में बिहार करने लगे। औ आठो पटरानियाँ आठौ पहर हरि की सेवा में है। नित उठ भोरही कोई मुख धुलावै, कोई उबटन लगाय न्हिलावे, कोई परस भोजन बनाय जिमावै, कोई अच्छे पान लोग, इलाइची, जावित्री, जायफल समेत पिय को बनाये बनाये खिलावै, कोई सुथरे वस्र औ रतनजटित आभूषन चुन बास औ बनाय प्रभु को पहनाती थी, कोई फूल माल पहराय गुलाबनीर छिड़क केसर चंदन चरचती थी, कोई पंखा डुलाती थी और कोई पाँव दाबती थी।

महाराज, इसी भाँति सब रानियाँ अनेक अनेक प्रकार से प्रभु की सदा सेवा करै औ हरि हर भाँति उन्हें सुख दें। इतनी कथा सुनयि श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, कई बरस के बीच

एक एक यदुनाथ की नारिन जाये पुत्र।
इक इक कन्या लक्ष्मी, दस दस पुत्र सुपुत्र॥
एक लाख इकसठ सहस, ऐसी बाढ़ इक सार।
भये कृष्ण के पुत्र थे, गुन बल रूप अपार॥

सब मेघबरन चंदमुख कँवलनयन लीले पीले झगुले पहने, गडे कठले ताइत गले में डाले, घर घर बालचरित्र कर कर मात पिता को सुख दे औ उनकी माएँ अनेक भाँति से लाड़ प्यार कर प्रतिपालन करें। महाराज, श्रीकृष्णचंदजी के पुत्रो को होना सुन