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नही तो रस में अनरस होता दीसे है। यह बचन सुन रुक्म बोला कि बहन, तुम किसी बात की चिन्ता मत करो, मैं पहले जो राजा देस के पाहुने आए हैं तिन्हें बिदा कर आऊँ पीछे जो तुम कहोगी सो मैं करूँगा। इतना कह रुक्म वहाँ से उठ जो राजा पाहुने आए थे उनके पास गया। वे सब मिलके कहने लगे कि रुक्म, तुमने कृष्ण बलदेव को इतना धन द्रव्य दिया और विन्होंने मारे अभिमान के कुछ भला न माना। एक तो हमे इस बात का पछतावा है और दूसरे उस बात की कसक हमारे मन से नहीं जाती कि जो बलराम ने तुम्हे अभरम किया था।

महाराज, इस बात के सुनतेही रुक्म को क्रोध हुआ, तब राजा कलिग बोला कि एक बात मेरे जी में आई है, कहो तो कहूँ। रुक्म ने कहा-कहो। फिर उसने कहा कि हमे श्रीकृष्ण से कुछ काम नहीं पर बलराम को बुला दो तो हम उससे चौपड़ खेल सब धन जीत ले और जैसा उसे अभिमान है तैसा यहाँ से रीते हाथ बिदा करें। जो कलिग ने यह बात कही तोही रुक्म वहाँ से उठ कुछ सोच विचार करता बलरामजी के निकट जा बोला कि महाराज, आपको सब राजाओ ने प्रनाम कर बुलाया है चौपड़ खेलने को।

सुन बलभद्र तबहि तहाँ आए। भूपनि उठकै सीस निवाए॥

आगे सब राजा बलरामजी का सिष्टाचार कर बोले कि आप को चौपड़ खेलने का बड़ा अभ्यास है, इसलिए हम आपके साथ खेला चाहते है। इतना कह उन्होने चौपड़ मँगवाय बिछाई और रुक्म से औ बलरामजी से होने लगी। पहले रुक्म दस बेर जीता तो बलदेवजी से कहने लगा कि धन तो सब बीता अब