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बंदी, ढेड़ी, करनफूल, चौदानियाँ, छड़े, गजमोतियो की नथ भलके जटकन समेत, जुगनी मोतियो के दुलड़े में गुही, चंद्रहार, मोहनमाल पॅचलड़ी, सतलड़ी धुकधुकी, भुजबंद, नौरतन, चूड़ी, नौगरी, कंकन, कड़े मुंदरी, छाप, छल्ले, किकनी, जेहर, तेहर, गूँजरी, अनवट, बिछुए पहन। सुथरा झमझमाता सञ्च मोतियो की कोर का बड़े घेर का घाघरा औ चमचमाती ऑचल पल्लू की सारी पहर, जगमगाती कंचुकी कस, ऊपर से भलमलाती ओढ़नी ओढ़, तिसपर सुगंध लगाय इस सज धज से हँसती हँसती सखियों के साथ सात पिता को प्रनाम करने गई कि जैसे लक्ष्मी। जो सनमुख जय दंडवत कर ऊषा खड़ी भई तो बानासुर ने इसके जोबन की छटा देख, निज मन मे इतना कह, इसे बिदा किया कि अब यह ब्यान जोग हुई और पीछे से कै एक राक्षस उसके मंदिर की रखवाली को भेजे औ कितनी एक राक्षसी विसकी चौकसी को पठाई। वे वहॉ जाय आठ पहर सावधानी से रहने लगे और राक्षसनियॉ सेवा करने लगी।

महाराज, वह राजकन्या पति के लिए नित प्रति तप, दान, ब्रत कर श्रीपार्वतीजी की पूजा किया करै। एक दिन नित्य कर्म से निचित हो रात्र समै सेज पर अकेली बैठी मन मन यो सोच रही थी कि देखिये पिता मेरा विवाह कब करे औ किस भॉति मेरा बर मुझे मिले। इतना कह पतिही के ध्यान में सो गई तो सपने मे देखती क्या है कि एक पुरुष किशोर बैस, श्यामबरन, चंदमुख, कॅवलनैन, अति सुंदर, कामस्वरूप, पीतांबर पहरे, मोर मुकुट सिर धरे, त्रिभंगी छबि करे, रतनजटित आभूषन, मकराकृत कुंडल, बनमाल, गुंजहार पहने औ पीत बसन ओढ़े, महाचंचल सनमुख