पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २८ )


उदा॰―

'दाली रावी का। भुजेण रासा की। चार जुग रहसी। कब बातं कहंसी।'

दामोदरदास

ये दादू के शिष्य जगजीवनदास के चेले थे। इन्होने मार्कण्डेय पुराण का गद्यानुवाद किया है। इनका समय सं॰ १७१५ के लगभग माना जाता है। भाषा राजपूतानी है।
उदा॰―

'अथ वंदन गुरुदेव कूं नमस्कार, गोबिदजी कूं नमसकार, सरब परकार कै सिध, साध, रिष, मुनि जन सरब ही कूं नमसकार। अहो तुम सब साध ऐसी बुधि देहु जो बुधि करिया ग्रंथ की बारतिक भाषा अरथ रचना करिए। सरब संतान की कृपा ते समसत कारज सिधि होइ जी।'

अज्ञात

योगवासिष्ठ का हिंदी अनुवादें है। लिखने की समय सं॰ १७२० है। ग्रंथकर्ता का कुछ पता नहीं।
उदाहरण॰―

'इस विषे बड़ीयांं कथा है अरु नानाप्रकार कि या जुगतो है। तिन कथा और जुगतां करिकै वशिष्ठजी रामजी को जगाया है। सो मै तुझे सुनाया है। अपने उपदेश कर तिसको जीवनमुक्त किया।'

बैकुठमणि शुक्ल

ये बुदेलखंड के रहनेवाले थे और ओड़छानरेश महाराज जसवंतसिह (१६७५-८४) के आश्रित थे। इन्होंने दो पुस्तकें