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भय सब मिटाया। आगे वे दोनो परस्पर सेज पर वैठे हाव भाव कटाक्ष कर सुख लेने देने लगे औ प्रेमकथा कहने। इस बीच बातो ही बातो अनरुद्ध जी ने ऊषा से पूछा कि हे सुंदरि, तूने प्रथम मुझे कैसे देखा और पीछे किस भॉति ह्याँ मँगाया इसका भेद समझा कर कह जो मेरे मन का भ्रम जाय। इतनी बात के सुनते ही ऊषा पति को मुख निरख हरख के बोली―

मोहि मिले तुम सपने आय। मेरौ चित लै गये चुराय।।
जागी मन भारी दुख लह्यौ। तब मैं चित्ररेष सौ कह्यौ।।
सोइ प्रभु तुमको ह्यॉ लाई। ताकी गति जानी नहि जाई।।

इतना कह पुनि ऊषा नें कहा―महाराज, मैं तो जिस भाँति तुम्हे देखा औ पाया तैसे सब कह सुनाया। अब आप कहिये अपनी बात समझाय, जैसे तुमने मुझे देखा यादव राय। यह बचन सुन अनरुद्ध अति आनंद कर मुसकरायके बोले कि सुंदरि, मै भी आज रात्र को सपने मे तुझे देख रहा था कि नींदही में कोई मुझे उठवाय यहॉ ले आया, इसका भेद अबतक मैंने नही पाया कि मुझे कौन लाया, जागा तो मैने तुझे ही देखा।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, ऐसे वे दोनो पिय प्यारी आपस मे बतराय, पुनि प्रीति बढ़ाय अनेक अनेक प्रकार से काम कलोल करने लगे औ बिरह की पीर हरने। आगे पान की सिठाई, मोती माल की सीतलताई औ दीप जोति की मंदताई निरख जो ऊषा बाहर जाय देखे तो ऊषाकाल हुआ। चंद की जोति घटी, तारे दुतिहीन भये, आकाश में अरुनाई छाई, चारो ओर चिड़ियॉ चुहचुहाई, सरोवर मे कुमुदनी कुमलाई औ कँवल फूले। चकवा चकई को संयोग हुआ।