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गद्य में लिखी हैं जिनके नाम वैशाख माहात्म्य और अगहन माहात्म्य है। ये दोनो ब्रज भाषा में लिखी गई हैं, पर खड़ी बोली का अधिक मिश्रए
उदा॰―

'सब देवतन की कृपा तै अरु प्रसाद तै वैकुंठमनि सुकुल श्रीमहारानी श्रीरानी चंद्रावती के धरम पढ़िबे के अरथ यह जयरूप ग्रंथ वैसाषमाहतम भाषा करत भए। एक समय नारदजू ब्रह्मा की सभा तै उठिकै सुमेर पर्वत को गए। पुनि गंगाजी को प्रवाह देखि पृथी विषै अए। तहाँ सब तीरथन को दरसन करत भए, तब श्रीराजा अंबरीष के यहाँ आए। जब राजा अंबरीष नारद की नजीक आए की खबर सुनी तबही उताइल कै सभा है उठि आगे होइ लये।'

कुलपति मिश्र

यह आगरा निवासी माथुर परशुराम के पुत्र थे। इन्होने सं॰ १७२७ मे रसरहस्य ग्रंथ लिखा था, जो मम्मट के काव्य प्रकाश के आधार पर है। भरत मुनि और साहित्यदर्पण आदि का भी उल्लेख है। इसमें गद्य-पद्य दोनो है। इसके सिवा मुक्ति तरंगिणी, संग्रामसार, नाट्यशील, तथा द्रोणपर्व इनकी रचनाएँ मिली हैं। रस रहस्य आठ वृत्तांतो में विभक्त है जिनमें से अंतिम अर्थालंकार पर सबसे बड़ा है। गद्य का प्रयोग समझाने के लिए सर्वत्र किया गया है।
उदा―

अरु रसध्वनी में भावही व्यंगि होत है तातें रसध्वनि क्यो न होइ, द्वै भेद काहे को गहै। तहां सावधान करत है। प्रथम तो