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फूल बरसाय जैजैकार करते थे और घर बाहर सारे नगर मे आनंद हो रहा था, कि उसी समैं बलराम सुखधाम औ श्रीकृष्णचंद आनंदकंद सब यदुबंसियों को बिदा दे, अनरुद्ध अषा को साथ ले राजमंदिर में जा विराजे।

आनी ऊषा गेह मझारी। हरषहि देखि कृष्ण की नारी॥
देहि असीस सासु उर लावे। निरखि हरषि भूषन पहिरावे॥