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की टीका, नखशिप, रसिकप्रिया की टीका, रससरस, रसरत्न और बैतालपंचविशति का ब्रज भापा में गद्यानुवाद। इनका रचनाकाल सं० १७६० से १८०० तक है।

उदा०―

‘कमलनयन कमल से हैं नैन जिनके, कमलद वरन कमलद कहिए मेघ को वरण है, स्ययाम स्वरूप है, कमलनाभि श्रीकृष्ण को नाम ही है कमल जिनकी नाभि ते उपज्यौ है, कमलाय कमला लक्ष्मी ताके पति है तिनके चरण कमल समेत गुन को जाये क्यों मेरे मन में रहो।’

महाराज अजीतसिंह

जोधपुर नरेश महाराज जसवंतसिह के पुत्र थे। इनका जन्म सं० १७३७ वि० मे हुआ था और सं० १७८१ वि० में यह पुत्रों द्वारा मारे गए। इन्होने दुर्गापाठ भाषा, गुणसार, राजारूप का ख्याल, निर्बाणी दोहा, महाराज श्रीअजीतसिहजीरा कह्या दोहा, (महाराज श्रीअजीतसिहजी कृत दोहा) श्रीठाकुररॉरा ओर भवानी सहसनाम लिखा है। गुणसार गद्य पद्य-मय है जिसमें राजा सुमति और रानी सत्यरूपा की कथा है।

उदा०―

“पाछो कहिये पिता जो राज रा आसिर्वचनां सुम्हें आ पदवी पाया जो विमांंन बेठा बैकुंठ जावा छा। सो इस भांति परसपर वार्ता कर राजी होयने। अे आ आह घाहालिया सो ज्युँँ आगे लोक बताया छे त्युं त्युंं इंद्रलोक शिवलोक ब्रह्मलोक में होयने बैकुंठ लोक गया।